शुक्र है उस फ़िक्र का
जिस फ़िक्र का कोई ज़िक्र नहीं
इल्म है उस जिस्म का
जिस जिस्म मैं कोई इल्म नहीं
ना झुके ये नक्श !
ये नक्श का ही लक्ष्य है
अक्स वो जो था नहीं
जो था किसीका अक्स है
काटते ये पल मुझे
मुझसे बगावत करते हैं
कहतें है क्यों झुकता नहीं तू?
मुझे काटने को तरसते हैं ये
जो मुझे ज़ंजीर से जकड़ ले
सर उसका ही है
जो जकड पाया नहीं
तो उसे चीरना भी मुझे है
बंद मुट्ठी की ज़ुबां
मुक्का बयाँ कर जाएगा
मुक्का जो खुल थप्पड़ बना तो
गाल पर छप जाएगा
छाप देके गाल पर
वह खौफ भी जाएगा
तू सिर्फ आगाज़ कर
तुझे.....तेरा काल नज़र ही आएगा
जिस फ़िक्र का कोई ज़िक्र नहीं
इल्म है उस जिस्म का
जिस जिस्म मैं कोई इल्म नहीं
ना झुके ये नक्श !
ये नक्श का ही लक्ष्य है
अक्स वो जो था नहीं
जो था किसीका अक्स है
काटते ये पल मुझे
मुझसे बगावत करते हैं
कहतें है क्यों झुकता नहीं तू?
मुझे काटने को तरसते हैं ये
जो मुझे ज़ंजीर से जकड़ ले
सर उसका ही है
जो जकड पाया नहीं
तो उसे चीरना भी मुझे है
बंद मुट्ठी की ज़ुबां
मुक्का बयाँ कर जाएगा
मुक्का जो खुल थप्पड़ बना तो
गाल पर छप जाएगा
छाप देके गाल पर
वह खौफ भी जाएगा
तू सिर्फ आगाज़ कर
तुझे.....तेरा काल नज़र ही आएगा