Thursday, November 9, 2017

शुक्र है उस फ़िक्र का

शुक्र है उस फ़िक्र का
जिस फ़िक्र का कोई ज़िक्र नहीं
इल्म है उस जिस्म का
जिस जिस्म मैं कोई इल्म नहीं

ना झुके ये नक्श !
ये नक्श का ही लक्ष्य है
अक्स वो जो  था नहीं
जो था किसीका अक्स है

काटते ये पल मुझे
मुझसे बगावत करते हैं
कहतें है क्यों झुकता नहीं तू?
मुझे काटने को तरसते हैं ये

जो मुझे ज़ंजीर से जकड़ ले
सर उसका ही है
जो जकड पाया नहीं
तो उसे चीरना भी मुझे है

बंद मुट्ठी की ज़ुबां
मुक्का बयाँ कर जाएगा
मुक्का जो खुल थप्पड़ बना तो
गाल  पर छप जाएगा

छाप देके गाल पर
वह खौफ भी  जाएगा
तू सिर्फ आगाज़ कर
तुझे.....तेरा काल नज़र ही आएगा


Clarity

It's about being clear dude! You ought to have some clarity and blah blah blah! Am I blabbering again? and about what? You and I co...